Friday, February 1, 2013

सर्दी में माँ की शाल याद आती है

सर्दी में माँ की शाल याद आती है
वोह पतली सी
हरे रंग की,
कुछ रंग बिरंगी फूल बने थे
कबसे लिपटे थे वोह उन कर्मठ कंधो पर।

माचिस की खुशबू
कई मसालों कि महक
आया करती थी उस से
कभी सर पर कभी कंधों पे झुला करती
काम करते हाथों को गर्मी कहाँ भाती है।

कभी कभी रसोई में दौड़ लगाते हम
छिप जाया करते  उसके अन्दर
उसके हरे धागों के बीच से आती झिलमिल रोशिनी
वह भीनी महक
और सुन्हेलि गर्मी
एक अलग ही संसार था।
सादा सुखद और शांत।

अब सर्दी में मोटे मोटे स्वेटरों में कहीं चिपे हुए हम
नीचे देख के जल्दी जल्दी भागते रहते है
ठंड से .. अकेलेपन से .. शोर से
तो और भी
सर्दी में माँ की शाल याद आती है।


Written on 1st February, 2013.

(First post of the year..A very Happy New Year !! wont apologize for the long absence because there is no excuse or apology. This poem was in my mind since long..I still remember that green shawl mom had and used to wear it in the severe winters of Srinagar. I can still smell matchsticks and spices on it. Have not seen it since long. Will check if she still has it. Memories have a way of lingering.. :) Till next time.. Hopefully soon..Happy Valentines Day !! Spread Love)